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चण्डकौशिक को प्रतिबोध | Bhagwan Mahaveer And Chandkosik discussion

Lord Mahaveer Journey toward Ashram where Chandkoshi Snake was present  उत्तर वाचाला की ओर बढ़ते हुए प्रभु महावीर कनखमल आश्रम पहुँचे। उस आश्रम से वाचाला पहुँचने के लिए दो मार्ग थे। एक आश्रम से होकर, और दूसरा बाहर से भगवान ने सीधा मार्ग पकड़ा। कुछ दूर जाने पर उन्हें कुछ ग्वाले मिले। उन्होंने प्रभु से कहा - भगवन्! इस पथ पर आगे एक वन है, जहाँ चण्डकौशिक नामक एक भयंकर दृष्टिविष साँप रहता है, जो पथिकों को देखकर अपने विष से भस्मसात् कर देता है। अच्छा होगा कि आप दूसरे मार्ग से आगे की ओर पधारें। भगवान ने सोचा- चण्डकौशिक भव्य प्राणी है, अतः प्रतिबोध देने से अवश्यमेव प्रतिबुद्ध होगा और वे चण्डकौशिक का उद्धार करने के लिए उसी मार्ग पर आगे बढ़ते रहे । चण्डकौशिक  Past History चण्डकौशिक सर्प अपने पूर्वजन्म में एक तपस्वी था एक बार तप के पारणे के दिन वह तपस्वी अपने शिष्य के साथ भिक्षार्थ निकला। भ्रमण करते समय मुनि के पैर के नीचे अनजाने एक मेंढ़की दब गई। यह देख शिष्य ने कहा- गुरुदेव ! आपके पैर से दबकर मेंढ़की मर गई । मुनि ने कुछ नहीं कहा। शिष्य ने सोचा कि सायंकाल प्रतिक्रमण के समय गुरुदेव इसका प्रायश्चित