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About Me

 Sushil Jain

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I have over 10 years of experience in the EdTech industry and Jain worship & its history. I believe that the most important definition of life is worship, meditation, and scaling up, I believe our soul is next to god, and we should realize the potential of human beings how our ancestors were doing worship and they get positive energy which is lacking in today's era.

Sushil holds a Bachelor of Technology degree from the Madhya Pradesh.

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Lesson To Avoid hatred, Lord Mahavir Speech Towards Society!!!

Lesson To Avoid hatred, Lord Mahavir Speech Towards Society!!!  किसी से इतनी नफरत भी मत करो कि उसकी अच्छी बात भी बुरी लगे  किसी से इतना प्यार मत करो कि उसकी बुरी बात भी अच्छी लगे।  किसी की अच्छी बात को स्वीकार करो और उसकी बुरी बातों को इग्नोर करो । बुरी बात को देखकर आदमी को बुरा मत मानो । अगर बुरे को बुरा ही कहते रहोगे तो उसकी अच्छाई भी बुराई में बदल सकती है ।  इसलिए कहते हैं कि पाप से घृणा करो पापी से नहीं ।  पुराने जमाने में घर में सीधा आटा न आकर गेहुं आते थे । घर की महिलाएं ही उस गेहूं को थाली में लेकर ध्यानपूर्वक देखकर उसमें से कंकर,तिनके, और जीव जंतु अलग करती थी और गेहूं को अलग करती थी । फिर उन गेहुओं को घर में पत्थर की चक्की में स्वयं पीसती थी । फिर उस आटे से रोटी भी स्वयं पकाती थी, क्योंकि वो रोटी उसके पति और बच्चे खाने वाले हैं । वे सब उसके अपने है ।इसलिए उनके पेट में ऐसी कोई वस्तु न जावे जो उसके आंखों से अनदेखी हो । इसलिए पुराने जमाने में लोगों का तन मन दोनों स्वस्थ रहता था ।  आज किसके घर में गेहूं आते हैं?  आते हैं क्या ?  जन आवाज- नहीं ...

चण्डकौशिक को प्रतिबोध | Bhagwan Mahaveer And Chandkosik discussion

Lord Mahaveer Journey toward Ashram where Chandkoshi Snake was present  उत्तर वाचाला की ओर बढ़ते हुए प्रभु महावीर कनखमल आश्रम पहुँचे। उस आश्रम से वाचाला पहुँचने के लिए दो मार्ग थे। एक आश्रम से होकर, और दूसरा बाहर से भगवान ने सीधा मार्ग पकड़ा। कुछ दूर जाने पर उन्हें कुछ ग्वाले मिले। उन्होंने प्रभु से कहा - भगवन्! इस पथ पर आगे एक वन है, जहाँ चण्डकौशिक नामक एक भयंकर दृष्टिविष साँप रहता है, जो पथिकों को देखकर अपने विष से भस्मसात् कर देता है। अच्छा होगा कि आप दूसरे मार्ग से आगे की ओर पधारें। भगवान ने सोचा- चण्डकौशिक भव्य प्राणी है, अतः प्रतिबोध देने से अवश्यमेव प्रतिबुद्ध होगा और वे चण्डकौशिक का उद्धार करने के लिए उसी मार्ग पर आगे बढ़ते रहे । चण्डकौशिक  Past History चण्डकौशिक सर्प अपने पूर्वजन्म में एक तपस्वी था एक बार तप के पारणे के दिन वह तपस्वी अपने शिष्य के साथ भिक्षार्थ निकला। भ्रमण करते समय मुनि के पैर के नीचे अनजाने एक मेंढ़की दब गई। यह देख शिष्य ने कहा- गुरुदेव ! आपके पैर से दबकर मेंढ़की मर गई । मुनि ने कुछ नहीं कहा। शिष्य ने सोचा कि सायंकाल प्रतिक्रमण के समय गुरुदेव इसका प...

Bhagwan Rishabhdev(भगवान ऋषभदेव) | First Thirthankar

 भगवान ऋषभदेव तीर्थङ्कर पद प्राप्ति के साधन              भगवान ऋषभदेव मानव समाज के आदि व्यवस्थापक और प्रथम धर्म नायक रहे हैं। जब तीसरे आरे के 84 लाख पूर्व, तीन वर्ष और साढ़े आठ मास अवशेष रहे' और अन्तिम कुलकर महाराज नाभि जब कुलों की व्यवस्था करने में अपने आपको असमर्थ एवं मानव कुलों की बढ़ती हुई विषमता को देखकर चिन्तित रहने लगे, तब पुण्यशाली जीवों के पुण्य प्रभाव और समय के स्वभाव से महाराज नाभि की पत्नी मरुदेवी की कुक्षि से भगवान ऋषभदेव का जन्म हुआ। आस्तिक दर्शनों का मन्तव्य है कि आत्मा त्रिकाल सत् है, वह अनन्त काल पहले था और भविष्य में भी रहेगा। वह पूर्व जन्म में जैसी करणी करता है, वैसे ही फल भोग प्राप्त करता है। प्रकृति का सहज नियम है कि वर्तमान की सुख समृद्धि और विकसित दशा किसी पूर्व कर्म के फलस्वरूप ही मिलती है। पौधों को फला-फूला देखकर हम उनकी बुआई और सिंचाई का भी अनुमान करते हैं। उसी प्रकार भगवान ऋषभदेव के महा-महिमामय पद के पीछे भी उनकी विशिष्ट साधनाएँ रही हुई हैं। जब साधारण पुण्य-फल की उपलब्धि के लिए भी साधना और करणी की आवश्यकता होती है, तब त्...