Bhagwan Mahaveer and Goshalak ki kahani विहार करते हुए भगवान राजगृह पहुँचे और वहाँ नालन्दा की एक तन्तुवाय - शाला में वर्षावास हेतु विराजे । भगवान के प्रथम मास - तप का पारणा विजय सेठ के यहाँ हुआ। उस समय आकाश में देवदुंदुभि हुई और पंच- दिव्य प्रकट हुए। भाव-विशुद्धि से विजय सेठ ने संसार परिमित किया और देवलोक का भव पाया। मंखलिपुत्र गोशालक भी उस समय वहीं वर्षावास कर रहा था। गोशालक ने भगवान के तप की महिमा देखी तो उनके पास गया। भगवान ने वर्षावास के समय मास-मास का दीर्घ स्वीकार कर रखा था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भिक्षा के लिए प्रस्थान करते समय गोशालक ने भगवान से पूछा- भगवन्! मुझे आज भिक्षा में क्या मिलेगा? सिद्धार्थ देव ने कहा- 'कोदो का बासी भात, खट्टी छाछ और खोटा रूपया ।' भगवान की भविष्यवाणी को गलत प्रमाणित करने के लिए गोशालक भिक्षा के लिए ऊँचे-ऊँचे गाथापतियों के यहाँ गया, पर उसे वहाँ भिक्षा नहीं मिली । अन्त में एक लुहार के यहाँ उसको खट्टी छाछ, बासी भात और दक्षिणा में एक रूपया मिला जो बाजार में नहीं चला। गोशालक के मन पर इस घटना का यह प्रभाव पड़ा कि वह नियतिवाद का भक्त बन गया। चातुर...
ains trace their history through twenty-four tirthankara and revere Rishabhanatha as the first tirthankara, The two main sects of Jainism, the Digambara and the Shvetaambar