श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के अतिशयों में संख्या समान होने पर भी निम्नलिखित अन्तर है: श्वेताम्बर ग्रन्थ समवायांग में तीर्थङ्करों के आहार-नीहार को चर्मचक्षु द्वारा अदृश्य-प्रच्छन्न माना इसके स्थान पर दिगम्बर परम्परा में स्थूल आहार का अभाव और नीहार नहीं होना, इस तरह दाना अला अतिशय मान्य किये हैं। ( There is the following difference between the extremes of the Svetambara and Digambara tradition, even though the number is the same: In the Svetambara book Samvayang, the diet of the Tirthankaras is considered to be invisible-disguised by the skin eye ). समवायाँग के छठे अतिशय से ग्यारहवें तक अर्थात् आकाशगत चक्र से अशोक चक्र तक के न दिगम्बर परम्परा में नहीं हैं। इनके स्थान पर निर्मल दिशा, स्वच्छ आकाश, चरण के नीचे स्वर्ण-कमल आकाश में जयजयकार, जीवों के लिए आनन्ददायक, आकाश में धर्मचक्र का चलना व अष्ट मंगल, ये 7 अतिशय माने गये हैं। (From the sixth Atishaya to the eleventh of the Samvayang, i.e. from the Akashagat Chakra to the Ashoka Chakra, there are no Digambaras in the tradition. In pla...
ains trace their history through twenty-four tirthankara and revere Rishabhanatha as the first tirthankara, The two main sects of Jainism, the Digambara and the Shvetaambar