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Tirthankara's speech 35 qualities | तीर्थंकर की वाणी 35 गुण

35 qualities of Tirthankara's speech | Tirthankar Khand  समवसरण में तीर्थङ्कर भगवान की मेघ सी वाणी पैंतीस अतिशयों के साथ अविरलरूप से प्रवाहित होती है। वे पैंतीस अतिशय इस प्रकार हैं:- (In Samavasaran, the cloud-like speech of the Tirthankara God flows incessantly with thirty-five superlatives. Those thirty-five extremes are as follows:-) लक्षणयुक्त हो, उच्च स्वभाव युक्त हो, मर्मवेधी न हो, धर्मार्थ रूप पुरुषार्थ की पुष्टि करने वाली हो, ग्रामीणता यानी हल्के शब्दादि से रहित हो,  अभिधेय अर्थ की गम्भीरता वाली हो, मेघ जैसी गम्भीर हो, अनुनाद अर्थात् प्रतिध्वनियुक्त हो वक्रता- दोष-रहित सरल हो, मालकोशादि राग-सहित हो अर्थ-गम्भीर हो पूर्वापर विरोधरहित हो, आत्म-प्रशंसा व पर-निन्दा रहित हो श्लाघनीय हो. कारक, काल, वचन और लिंग आदि के दोषों से रहित हो श्रोताओं के मन में आश्चर्य पैदा करने वाली हो, अद्भुत अर्थ-रचना वाली हो, शिष्टतासूचक हो, सन्देहरहित हो पर-दोषों को प्रकट न करने वाली हो, विलम्ब रहित हो, विभ्रमादि दोषरहित हो श्रोताओं के हृदय को आनन्द देने वाली हो बड़ी विचक्षणता से देश काल के अनुस