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Aadinath(RishabhDev | भगवान ऋषभ) God Samavasran | आदि प्रभु का समवसरण

Aadinath Rishabhdeo image

 केवलज्ञान द्वारा ज्ञान की पूर्ण ज्योति पा लेने के पश्चात् भगवान ने जहाँ प्रथम देशना दी, उस स्थान और उपदेश-श्रवणार्थ उपस्थित जन समुदाय देव-देवी, नर-नारी, तिर्यञ्च समुदाय को समवसरण कहते हैं।

(After attaining the full light of knowledge through Kevalgyan, the place where God gave the first sermon and the community of God-Goddess, male-female, Tiryancha community present for listening to the sermon is called Samavasaran.)

'समवसरण' पद की व्याख्या करते हुए आचार्यों ने कहा है-“सम्यग् एकीभावेन अवसरणमेकत्र गमनं-मेलापकः समवसरणम्।' अर्थात्-अच्छी तरह एक स्थान पर मिलना अथवा साधु-साध्वी आदि संघ का एकत्र मिलना एवं व्याख्यान सभा समवसरण कहलाते हैं ।

(Explaining the term 'Samvasaran', the Acharyas have said - "Samyag Ekibhaven Avasaranamektra Gamanam-Melapak: Samavasaranam." Means- well meeting at one place or meeting of Sadhu-Sadhvi etc. Sangh together and lecture meeting is called Samavasaran.)

'भगवती सूत्र' में क्रियावादी, अक्रियावादी अज्ञानवादी, विनयवादी, रूपवादियों के समुदाय को भी समवसरण कहा है। यहाँ पर तीर्थङ्कर के प्रवचन सभा रूप समवसरण का ही विचार इष्ट है । तीर्थङ्कर की प्रवचन सभा के लिए आचार्यों की मान्यता है कि भगवान तीर्थङ्कर का जहाँ समवसरण होता है, वहाँ चार-चार कोस तक देवगण भूमि को संवर्त वायु से स्वच्छ और दिव्य पुष्पवर्षा से सुवासित करते हैं। समवसरण की भूमि में देवेन्द्रों द्वारा रत्नों से विचित्र तीन प्राकार बनाये जाते हैं। पहला रत्नमय र वैमानिक देवों द्वारा बनाया जाता है। इसी प्रकार सुवर्णमय दूसरा प्राकार ज्योतिष्क देवों द्वारा और तीसरा रजतमय प्राकार भवनपति देवों द्वारा निर्मित किया जाता है।

(In 'Bhagwati Sutra', the community of verbists, non-actionists, ignorantists, Vinayists, formalists has also been called Samavasaran. Here the idea of ​​samavasaran in the form of Tirthankar's discourse assembly is the same. It is believed in the excerpts for the speech meeting of Tirthankar that where Lord Tirthankar is merged, the deities clean the land for four kos and fragrant with divine flower rain for four kos In the land of Samavasaran, three different types of gems are made by Devendras. The first is made by the Ratnamaya and Vaimanik gods. Similarly, the second golden form is created by the astrologer gods and the third silver form is created by the Bhavanpati gods.)

तीनों प्राकारों पर वैमानिक, ज्योतिष्क और भवनपति देवों द्वारा अनुक्रमशः रत्नादिमय तीन प्रकार के कंगूरे बनाये जाते हैं। व्यन्तरदेव ध्वजा, पताका युक्त तोरण और मनोहर धूपघड़ियों की व्यवस्था करते हैं।(teenon praakaaron par vaimaanik, jyotishk aur bhavanapati devon dvaara anukramashah ratnaadimay teen prakaar ke kangoore banaaye jaate hain. vyantaradev dhvaja, pataaka yukt toran aur manohar dhoopaghadiyon kee vyavastha karate hain.)

प्रथम-आभ्यन्तर प्राकार के मध्य भाग में अशोक वृक्ष के नीचे तीर्थङ्कर देव के विराजमान होने के लिए चैत्यवृक्ष के नीचे रत्नमय पीठ पर देवछंदक और उस देवछंदक में प्रभु सिंहासन पर विराजमान होते हैं। वह अशोक वृक्ष तीर्थङ्कर देव के शरीर की ऊँचाई से बारह गुना ऊँचा होता है।

(pratham-aabhyantar praakaar ke madhy bhaag mein ashok vrksh ke neeche teerthankar dev ke viraajamaan hone ke lie chaityavrksh ke neeche ratnamay peeth par devachhandak aur us devachhandak mein prabhu sinhaasan par viraajamaan hote hain. vah ashok vrksh teerthankar dev ke shareer kee oonchaee se baarah guna ooncha hota hai.)

समवसरण की इस प्रकार की विशिष्ट रचना सर्वत्र नहीं होती। विशिष्ट प्रसंगों को छोड़ शेष स्थानोंपर सामान्य रूप से ही समवसरण होता है। निर्युक्तिकार के अनुसार-जहाँ तीर्थङ्कर प्रभु का कैवल्योपलब्धिके पश्चात् सर्वप्रथम पदार्पण हो, अथवा महर्द्धिक देव का आगमन हो, वहाँ पर संवर्तवायु, जलवृष्टि, पुष्पवृष्टि और तीन प्रकार के प्राकारों की रचना आभियौगिक देव करते हैं।

कतिपय आचार्यों का अभिमत है कि जहाँ देवेन्द्र स्वयं आते हैं, वहाँ तीर्थङ्कर भगवान के तीन प्राकारों

वाले समवसरण की रचना की जाती है। जहाँ इन्द्र के सामानिक देव का आगमन होता है, वहाँ केवल एक ही प्राकार बनाया जाता है। यदि कभी कहीं इन्द्र अथवा इन्द्र के सामानिक देव का भी आगमन नहीं हो तो वहाँ पर भवनपति आदि देव समवसरण की रचना कभी करते भी हैं तो कभी नहीं भी करते।

विशिष्ट समवसरण में प्रवेश करने की भी एक निश्चित विधि अथवा व्यवस्था बताई गई है, जो इस

प्रकार है:-

गणधर समवसरण में पूर्व द्वार से प्रविष्ट हो, तीर्थङ्कर को वन्दन कर उनके दक्षिण की ओर बैठते हैं। इसी प्रकार अतिशय ज्ञानी, केवली और सामान्य साधु भी समवसरण में पूर्व द्वार से प्रविष्ट होते हैं।

वैमानिक देवियाँ पूर्व द्वार से प्रविष्ट होकर सामान्य साधुओं के पीछे की ओर खड़ा रहती हैं (69

साध्वियाँ पूर्व द्वार से समवसरण में आकर वैमानिक देवियों के पीछे खड़ी रहती हैं।

पीछे ज्योतिष्की देवियाँ और उनके पीछे व्यन्तर देवियाँ ठहरती हैं । भवनपति आदि तीनों प्रकार के "भवनपति आदि की देवियाँ, समवसरण में दक्षिण द्वार से आकर क्रमशः आगे भवनपति दवियाँ,

पश्चिमी द्वार से प्रवेश करते हैं।

वैमानिक देव और नरेन्द्र आदि मानव तथा मनुष्य स्त्रियाँ उत्तर द्वार से समवसरण में आकर क्रम न

एक दूसरे के पीछे बैठते एवं बैठती हैं। यहाँ दूसरी परम्परा यों बतलाई गई है-

'देव्या सर्वा एव न निषीदन्ति, देवाः, मनुष्याः, मनुष्यस्त्रियश्च निषीदन्ति ।' अर्थात् सभी देवियाँ स

बैठतीं, देव, मनुष्य और मनुष्य - स्त्रियाँ बैठती हैं ।

देव और मनुष्यों की परिषद् का पहले प्राकार में अवस्थान माना गया है

दूसरे प्राकार में पशु, पक्षी आदि तिर्यञ्च और तीसरे प्राकार में यानवाहन की अवस्थिति मानी गई

मूल आगमों में समवसरण की विशिष्ट रचना, व्यवस्था और प्रवेश विधि का कोई उल्लेख नहीं संभव है उत्तरकालवर्ती आचार्यों ने भावी समाज के लिए संघ व्यवस्था का आदर्श बताने हेतु ऐसी व्यवस प्रस्तुत की हो।

श्वेताम्बर परम्परा के ‘उववाइय सूत्र' में भगवान महावीर के समवसरण का वर्णन किया गया भगवान महावीर के चम्पा नगरी पधारने पर वनपालक द्वारा की गई बधाई से लेकर महावीर स्वामी शरीर सम्पदा आन्तरिक गुण, अनेक प्रकार के साधनाशील साधुओं का वर्णन, देव-परिषद्, मनुज-प और राजा-रानी के आने-बैठने आदि की झाँकी कराते हुए भगवान का अशोक वृक्ष के नीचे पृ

शिलापट्ट पर विराजना बताया गया है।

'उववाइय सूत्र' में यह तो उल्लेख है कि श्रमणगण से परिवृत्त, 34 अतिशय और 35 विशिष्ट वा

धर्मध्वज के साथ चौदह हजार श्रमण एवं छत्तीस हजार श्रमणियों के परिवार से युक्त पधारे। वहाँ पर परिषद्, मुनि-परिषद् आदि विशाल परिषदों में योजनगामिनी, सर्वभाषानुयायिनी अर्द्धमागधी भ तीर्थङ्कर महावीर की देशना का तो वर्णन है किन्तु इस प्रकार देवकृत समवसरण की विभूति

भाषा का अथवा देव नहीं होता। 

(vishisht samavasaran mein pravesh karane kee bhee ek nishchit vidhi athava vyavastha bataee gaee hai, jo is prakaar hai:- ganadhar samavasaran mein poorv dvaar se pravisht ho, teerthankar ko vandan kar unake dakshin kee or baithate hain. isee prakaar atishay gyaanee, kevalee aur saamaany saadhu bhee samavasaran mein poorv dvaar se pravisht hote hain. vaimaanik deviyaan poorv dvaar se pravisht hokar saamaany saadhuon ke peechhe kee or khada rahatee hain (69 saadhviyaan poorv dvaar se samavasaran mein aakar vaimaanik deviyon ke peechhe khadee rahatee hain. peechhe jyotishkee deviyaan aur unake peechhe vyantar deviyaan thaharatee hain . bhavanapati aadi teenon prakaar ke "bhavanapati aadi kee deviyaan, samavasaran mein dakshin dvaar se aakar kramashah aage bhavanapati daviyaan, pashchimee dvaar se pravesh karate hain. vaimaanik dev aur narendr aadi maanav tatha manushy striyaan uttar dvaar se samavasaran mein aakar kram na ek doosare ke peechhe baithate evan baithatee hain. yahaan doosaree parampara yon batalaee gaee hai- devya sarva ev na nisheedanti, devaah, manushyaah, manushyastriyashch nisheedanti . arthaat sabhee deviyaan sa baithateen, dev, manushy aur manushy - striyaan baithatee hain . dev aur manushyon kee parishad ka pahale praakaar mein avasthaan maana gaya hai doosare praakaar mein pashu, pakshee aadi tiryanch aur teesare praakaar mein yaanavaahan kee avasthiti maanee gaee mool aagamon mein samavasaran kee vishisht rachana, vyavastha aur pravesh vidhi ka koee ullekh nahin sambhav hai uttarakaalavartee aachaaryon ne bhaavee samaaj ke lie sangh vyavastha ka aadarsh bataane hetu aisee vyavas prastut kee ho. shvetaambar parampara ke ‘uvavaiy sootr mein bhagavaan mahaaveer ke samavasaran ka varnan kiya gaya bhagavaan mahaaveer ke champa nagaree padhaarane par vanapaalak dvaara kee gaee badhaee se lekar mahaaveer svaamee shareer sampada aantarik gun, anek prakaar ke saadhanaasheel saadhuon ka varnan, dev-parishad, manuj-pa aur raaja-raanee ke aane-baithane aadi kee jhaankee karaate hue bhagavaan ka ashok vrksh ke neeche pr shilaapatt par viraajana bataaya gaya hai. uvavaiy sootr mein yah to ullekh hai ki shramanagan se parivrtt, 34 atishay aur 35 vishisht va dharmadhvaj ke saath chaudah hajaar shraman evan chhattees hajaar shramaniyon ke parivaar se yukt padhaare. vahaan par parishad, muni-parishad aadi vishaal parishadon mein yojanagaaminee, sarvabhaashaanuyaayinee arddhamaagadhee bh teerthankar mahaaveer kee deshana ka to varnan hai kintu is prakaar devakrt samavasaran kee vibhooti bhaasha ka athava dev nahin hota.)




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