A very well explained article for the Moral Duty towards our parents || अपने माता-पिता के प्रति नैतिक कर्तव्य के बारे में बहुत अच्छी तरह से समझाया गया लेख
ये क्या कर रही हो निशा तुम.....अपनी पत्नी निशा को कमरे में एक और चारपाई बिछाते देख मोहन ने टोकते हुए कहा ...
निशा -मां के लिए बिस्तर लगा रही हूं आज से मां हमारे पास सोएगी....
मोहन-क्या ..... तुम पागल हो गई हो क्या ...
यहां हमारे कमरे में ...और हमारी प्राइवेसी का क्या ...
और जब अलग से कमरा है उनके लिए तो इसकी क्या जरूरत...
निशा-जरूरत है मोहन .....जब से बाबूजी का निधन हुआ है तबसे मां का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता तुमने तो स्वयं देखा है पहले बाबूजी थे तो अलग कमरे में दोनों को एकदूसरे का सहारा था मगर अब ....मोहन बाबूजी के बाद मां बहुत अकेली हो गई है दिन में तो मैं आराध्या और आप उनका ख्याल रखने की भरपूर कोशिश करते है ताकि उनका मन लगा रहे वो अकेलापन महसूस ना करे मगर रात को अलग कमरे में अकेले ....नहीं वो अबसे यही सोएगी...
मोहन-मगर अचानक ये सब ...कुछ समझ नहीं पा रहा तुम्हारी बातों को...।
निशा-मोहन हर बच्चे का ध्यान उसके माता पिता बचपन में रखते हैं सब इसे उनका फर्ज कहते हैं वैसे ही बुढ़ापे में बच्चों का भी तो यही फर्ज होना चाहिए ना..."और मुझे याद है मेरा तो दादी से गहरा लगाव था मगर दादी को मम्मी पापा ने अलग कमरा दिया हुआ था ...और उसरात दादी सोई तो सुबह उठी ही नहीं ..." डाक्टर कहते थे कि आधी रात उन्हें अटैक आया था जाने कितनी घबराहट परेशानी हुई होगी और शायद हम में से कोई वहां उनके पास होता तो... शायद दादी कुछ और वक्त हमारे साथ ...मोहन जो दादी के साथ हुआ वो मैं मां के साथ होते हुए नहीं देखना चाहती ...और फिर बच्चे वहीं सीखते है जो वो बड़ो को करते देखते हैं मैं नहीं चाहती कल आराध्या भी अपने ससुराल में अपने सास ससुर को अकेला छोड़ दे उनकी सेवा ना करें ...आखिर यही तो संस्कारों के वो बीज है जोकि आनेवाले वक्त में घनी छाया देनेवाले वृक्ष बनेंगे ...।
मोहन उठा और निशा को सीने से लगाते बोला-मुझे माफ करना निशा... अपने स्वार्थ में.. मैं अपनी मां को भूल गया अपने बेटे होने के कर्तव्य को भूल गया ...और फिर दोनों मां के पास गए और आदरपूर्वक उन्हें अपने कमरे मे ले आए....
घर का प्रत्येक सदस्य अपना कर्तव्य क्या है ये बात जिस दिन समझ लेगा हमारा घर साक्षात स्वर्ग बन जायेगा!
🪷🪷।। जय गुरुदेव ।।🪷🪷
आज का प्रेरक विचार🙏🙏
कोई बात अगर आपके अनुरूप न हो तो उसका केवल इतना ही अर्थ नहीं होता है कि वो एकदम गलत है अपितु उसका एक अर्थ यह भी है, कि हो सके उस बात को समझने के लायक आपकी बुद्धि का स्तर ही न हो
दुनियाँ की प्रतिस्पर्धाएं कुछ इस तरह की हो गयी हैं कि, जिसमें एक आदमी कहता है कि दिन के बाद रात होती है तो दूसरा आदमी पहली बात का खंडन करते हुए कहता है कि नहीं - नहीं दिन के बाद रात नहीं बल्कि रात के बाद दिन होता है।
इसे थोड़े से समझने के फेर में मनुष्य अपनी बहुमूल्य जीवन ऊर्जा का अपव्यय एक गलत दिशा में कर बैठता है। हो सके जिस हिमालय के दर्शन को आप सुबह की सुनहरी धूप में करने के कारण सुनहरा बता रहे हो वही दर्शन दूसरे को रात की धवल चाँदनी में करने कारण रजत ( चांदी के रंग जैसा दिखना ) सदृश मालूम पड़ेगा। बस थोड़ा दृष्टिकोण का ही फेर है।
दोनों अपनी - अपनी जगह सही होते हुए भी न पहले का कथन झूठा है और न दूसरे का इसलिए भगवान महावीर स्वामी ने अपने अनेकांतवाद में कहा कि परम सत्य केवल एक होने पर भी वह अलग - अलग कोणों से देखने पर अलग - अलग ही नजर आयेगा।
तुम सत्य हो सकते हो ये बात बिल्कुल सही है लेकिन केवल तुम ही सत्य हो सकते हो ये कदापि संभव ही नहीं।
NOTE: All the names written in the article are virtual based upon framing the article name were added, there is no evidence for it.
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