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Life Learning Lesson, Worship actual meaning for human beings | जीवन का पाठ सीखना, मनुष्य के लिए वास्तविक अर्थ की पूजा करना


जीवन का पाठ सीखना, मनुष्य के लिए वास्तविक अर्थ की पूजा करना :-  

इच्छाओ का घटना,(कम) लाइफ़ की सफलता है! जब तक स्वयं के स्वार्थ की निवृत्ति नहीं होती, तब तक दूसरों को सुख देने की प्रवृत्ति नहीं आ सकती है! जो धर्म मेरे आत्मिक शांति और गुणों की वृद्धि करता है, वही सच्चा मोक्ष मार्ग है! करना-करना, जीवन भर, मानो दौड़ में रेस के घोड़े की तरह व्यतीत किया है, हकीकत में तो छोडना ही

 ला आफ नेचर है! भले स्वयं के सुखों को छोड़ देना, परन्तु परिवार को दु:खी  नहीं करना चाहिए! माता पिता से कन्फर्ट लेने की आदत ही जिंदगी को फैल्यर बना देती है परंतु माता पिता का गाइडेंस लेकर जिंदगी जीने वाले अपनी लाइफ़ को सक्सीस बना लेते हैं! विनम्रता को आत्म विकास का प्रवेश द्वार माना जाता है। सभी सत्गुणों की पात्रता का कर्ता  विनम्रता ही है।  धर्म की पहचान विनम्रता से होती है।  धर्म का आत्मा में ठहराव सरलता गुण से ही होता है। बिना सरलता आत्मा में शुद्ध धर्म  प्रवेश नहीं करता है, और ठहराव तो हो ही नहीं सकता है। पत्थर पर फूल नहीं खिलते,काली मिट्टी में ही फूल अच्छे खिलते हैं, ठीक वैसे ही धर्म भी  बिना सरलता से आत्मा में सौख्य रुपी फूलों की न फसल और न सुगंध  आती है।  सरलता गुण होने से ही अन्य नयी नयी भाविक आत्माओं धर्म में संबंध जुड़ते है, तो मानों  सोने में सुगंध  रूप बन जाता है।मोहनीय कर्म का प्रभाव मायावी और अहंकारी जीवों पर शीघ्र ही होजाता है परंतु सरल और विनम्र इंसानों पर कम ही प्रभाव या नहीं के बराबर पड़ता है।  मोहनीय कर्म और मोह भावो मे जीना, ये भीतरी सुखद जीवन नहीं माना जाता है! माया लोभ अहंकार से जुड़ने पर शीघ्र जीवन का अधोपतन होना शुरूआत है।

  जिस तरह से हथोडा से  ताला खुलता  है, चाबी से भी खोला जाता है और  हथोड़े से तोडने पर फायदा  नहीं,नुकसान ही होता  है?विशेष परिस्थितियों में अपवाद मार्ग से तोडना या तुडवाना पडता है!

सही रीति तो  चाबी से सैकंड़ो में ताला खुल जाता है! ये साहुकारी रीति मानी गयी है। हथोडे से तोड़ना पड़ता है। 

तोडना और खोलना दोनो रीति ताला खोलने की है।

जीवन व्यवहार में भी समस्याओं के समाधान कषायों की उग्रता रूपी हथोड़ो से खोलने की बजाय चाबी रूपी विनम्रता - सरलता से खोलना ही सभी के लिए हितावह है।

कट्टरवाद,तेरे मेरे, आपसी दुरिंया,आगमों के अलग अलग अर्थ से,श्रावकों में असमंजसता नामक दोष बढ़ रहा है!गच्छ,संघ में मतभेद कम, मनभेद  ज्यादा बढने से भाव धर्म कमजोर हो रहा है! जिस तरह ज्ञान को ज्यादा से ज्यादा बढाने-फैलाने में संघ लगे हैं परंतु उसके पीछे होने वाली त्रस जीवों की महा हिंसा की तरफ कोई ध्यान ही नहीं दे रहे हैं, असली तो हिंसा बढ़ने से धर्म दृष्टि से अंदर से टुट ही रहे हैं! दया पालो बोलने वालों को सही दया क्या है? शायद भूल तो नहीं रहें हैं!श्रावकों का पहला मनोरथ आरंभ परिग्रह घटाने का संकेत है, सभी बढाने में तो जोर शोर से नहीं लगे है,  सभी संघ परिग्रह इकट्ठा करने में, करोड़ों में नहीं और आगे की बढ़ रहे हैं*??? _परिग्रह धर्म होता ही नहीं है!_ 

संघ-समाज-परिवार में शांति - समता- सौम्यता सफलता - मृदुता क्षमा आदि हजारों गुणों की अभिवृद्धि चाहिए तो विनम्रता रूपी चाबी का प्रयोग करना सीखें।

कठोरता, भरे व्यवहार अस्थाई और टुटने वाले होते है ,जबकि विनम्रता युत व्यवहार देश-समाज और धर्म सभी क्षेत्रों में जोड़ने का ही काम करते है।दबाब में भी विनम्रता रखना, ये भी भाव हिंसा ही है। स्वच्छ मन से सरलता युक्त विनम्रता का जीवन मनुष्य को सच्चा 'मानव "इन्सान" बना देता है। भगवान बनने से पहले इन्सान बनना प्रथम सीढ़ी है क्लेश-द्वेष से दूर  रखता है। विनम्रता झुकना सीखाती हैं।

झुकने वालें पेड़ उखड़ते नहीं है, अकड़ने वाले पेड़ जड़ से उखडते है! ऐसे ही मानव जीवन में समझना चाहिए!!! 

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